रुप कुमार
केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सार्वजनिक भागीदारी यानी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत शिक्षा को निजी क्षेत्र के हवाले करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे शिक्षा के क्षेत्र में कितना सुधार हो पाएगा, स्कूलों की व्यवस्था कितनी बेहतर हो पाएगी जैसे अनेक प्रश्न मुंह बाये खड़े हैं। इन्हीं मुद्दों पर हमने कुछ शिक्षाविदें की राय ली। इनमें अधिकतर शिक्षकों का कहना था कि इस व्यवस्था से गरीब के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। हां, अगर इस व्यवस्था पर पूरी तरह सरकारी नियंत्रण हो तो बात कुछ बन सकती है। ज्यादातर शिक्षक इस व्यवस्था के बदले स्कूलों को संसाधनों से लैस कर वहां की शैक्षणिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की वकालत की है। मारवाड़ी पाठशाला के गणित विषय के शिक्षक डॉ. महेश्र्वर प्रसाद यादव का कहना है कि शिक्षा का निजीकरण नहीं होना चाहिए। वे कहते हैं निजीकरण से शिक्षा का व्यवसायीकरण हो जाएगा। गरीब के बच्चों में अशिक्षा बढ़ जाएगी। पूंजीपतियों का बोलबाला हो जाएगा। फिलहाल शिक्षा की जो स्थिति है उसमें सुधार की जरूरत है। इसी विद्यालय के अंग्रेजी के शिक्षक लक्ष्मण प्रसाद सिंह का कहना है कि निजीकरण से शिक्षा व्यवस्था में मैनेजमेंट की पूर्ण भागीदारी हो जाएगी। इससे प्रबंधन की मनमानी बढ़ेगी। पैसे वालों की तूती बोलेगी। शिक्षक हरेराम गुप्ता का कहना है कि सरकारीकरण के कारण शिक्षा की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। मनमाने तरीके से शिक्षकों के तबादले से शिक्षण- व्यवस्था पूरी तरह प्रभावित हुई है। केन्द्र का यह प्रस्ताव स्वागत योग्य है। इससे प्रतियोगिता बढ़ेगी और मेधावी छात्रों को आगे आने का मौका मिलेगा। शिक्षक रंजन प्रसाद सिंह इसे शिक्षा हित में बेहतर मानते हैं। उनका विचार है कि सार्वजनिक भागीदारी होने से पब्लिक व प्राइवेट दोनों सेक्टर मजबूत होंगे। नवयुग विद्यालय के प्राचार्य चंद्रचूड़ झा का कहना है कि निजी संस्थानों की दखल बढ़ जाएगी। गरीब के बच्चों को शिक्षा हासिल करने में परेशानी होगी। इस व्यवस्था को लागू करने से बेहतर होगा सरकार सरकारी विद्यालयों की हालत में सुधार लाए। इसी विद्यालय के अर्थशास्त्र के शिक्षक प्रकाश चंद्र गुप्ता का कहना है कि इस व्यवस्था से पढ़ाई का स्तर ऊंचा होगा। लेकिन इसके लिए निर्धारित फीस के अलावा सिलेबस में एकरूपता होनी चाहिए। साथ ही सरकारी नियंत्रण में नियम-कानून के साथ व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए। राजकीय बालिका इंटर विद्यालय के समाज शास्त्र के शिक्षक संजय कुमार जायसवाल का कहना है कि निजीकरण शिक्षा में सुधार का बेहतर विकल्प नहीं है।
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